‘जरा गैरत तो दिखती है / सियासत में नया होगा’
( “इरा” पत्रिका का अप्रैल-मई 2025 संयुक्तांक) समीक्षक की कलम से ‘इरा’ पत्रिका के अप्रैल-मई 2025 के संयुक्तांक में शिज्जू शकूर की यादगार गजलों के कुछ शेर हैं –‘वह लड़खड़ा गया खुद हाथ छोड़कर मेरा/ जो दे रहा था मशविरा मुझे संभलने का/‘वह आंच छोड़ गया मुस्कुराते होठों की/ किया था अहद कभी जिसने साथ…