अपने बारे में
भारत की पत्रकारिता का अतीत सुनहरे पन्नों में दर्ज है। लेकिन आजादी के कुछ समय बाद से ही इसमें गिरावट शुरू हो गई थी। फिलहाल, स्थिति काबू से बाहर है। वैश्विक मीडिया निगरानी संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ( आरएसएफ) की ताजा रिपोर्ट ( 2024) बताती है कि 2023 के विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत की रैंकिंग 180 देशों में से 161 पर खिसक गई है। इससे पिछले साल यह 151वें रैंक पर थी। तो यह हाल है भारत की पत्रकारिता का।
भारत में पत्रकारिता पर चौतरफा हमला हो रहा है। सत्ताधारी प्रतिष्ठानों और कॉरपोरेट घरानों ने भारत की पत्रकारिता का गला घोंट दिया है। पत्रकारिता, जिसे शक्तिहीनों की शक्ति, गूंगों की आवाज माना जाता है, वह राजनेताओं, नौकरशाहों और धन्नासेठों की चेरी बन रह गई है। कहने को संविधान में बोलने की आजादी है, लेकिन जरा सोचकर देखिए कि क्या आज के निजाम में हम वह कह पा रहे हैं जो कहना चाहते हैं, क्या हम वह दिखा पा रहे हैं, जो दिखाना चाहते हैं। क्या सत्ता के आतंक ने हर तरह से आम आदमी और आम पत्रकारिता की जुबान में ताला नहीं लगा दिया है ? पत्रकारों के उत्पीड़न और दमन की इतनी कहानियां अहर्निश हमारी आंखों के सामने घूमती रहती हैं कि हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। क्या यह सही नहीं है कि कॉरपोरेट घरानों और सत्ताशाहों की घृणित जुगलबंदी ने समूचे देश को अपने चपेट में ले लिया है। ऐसे में स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता करना मुश्किल ही नहीं, बहुत मुश्किल हो गया है। कॉरपोरेट घरानों और बड़े-बड़े मीडिया हाउसों में मानो प्लास्टिक के पुतले या रोबोट बिठा दिए गए हैं।
ऐसे में सच्ची और जनपरक पत्रकारिता की कल्पना भी आकाश- कुसुम चुनने जैसी है। यह तलवार की धार पर चलना और अंगारों से खेलना है। मगर, जैसा कि हिंदी के शहीद पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी ने कहा था—अभी यहां पूरा अंधकार नहीं हुआ है। कहीं कोई झिर्री है, जहां से रोशनी आ रही है। मुक्तिबोध ने कहा था—वह परम अभिव्यक्ति दुर्निवार…तोड़ने होंगे गढ़-मठ सब…बशर्ते तय करो किस ओर हो तुम…
तो इसी आशा और उमंग, उत्साह और उत्सर्ग, साहस और जोखिम के साथ तेरह भाषाओं में एक साथ ‘जनमन इंडिया’ का यह मंच लेकर हम आए हैं। कहने में पस्तहिम्मती का एक कोण तो है मगर लाज नहीं है कि हम अभी निहायत साधनहीनता की स्थिति में हैं। हमारी आर्थिक क्षमताएं नगण्य हैं, मगर छाती चौड़ी है। आप हमारा संबल बनेंगे और सहारा भी। हम आपकी यातनाओं को, दुखों को, कठिनाइयों को वाणी देंगे और आप हमारा रास्ता चौड़ा करेंगे। इसी आशा और कामना के साथ हम आगे बढ़ने के लिए रणतत्पर हैं। कबीर ने कहा था—जो घर फूंके आपनो तो चले हमारे साथ…। हमारा परिवार अभी छोटा है, मगर विशाल होगा। ऐसा हम सोचते हैं…परिवार माने आप और आप सब और महान भारत की महान जनता…
इसी मकसद की तरफ हमारा यह लघु पद है। अंधकार में दीया जलाने सरीखा। हमारी आप से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें। इसके अलावा इसे और बेहतर करने के लिए सुझाव दें। हम आपके अनन्य आभारी होंगे।
अपनी टोली
सहयात्री
1-राकेश तिवारी (हमारे समय के सुपरिचित कथाकार-उपन्यासकार हैं। उनकी कहानियाँ हिंदी की लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। पेशे से पत्रकार हैं और पत्रकारिता की लंबी पारी के दौरान सबसे अधिक तीस वर्ष इंडियन एक्सप्रेस समूह के हिंदी दैनिक ‘जनसत्ता’ में रहे हैं। प्रमुख संवाददाता और विशेष संवाददाता रहते उनकी लिखी कई ख़बरों की खूब चर्चा रही है। उनकी कृतियों में ‘उसने भी देखा’, ‘मुकुटधारी चूहा’, ‘चिट्टी ज़नानियाँ’ (कहानी संग्रह), ‘फसक’, ‘रामसिंह फ़रार’ (उपन्यास), ‘पत्रकारिता की खुरदरी ज़मीन’ (पत्रकारिता), ‘तोता उड़’, ‘थोड़ा निकला भी करो’ (बाल साहित्य) शामिल हैं। उनकी कुछ कहानियों का दूसरी भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ है, नाट्य रूपांतरण हुआ है और फिल्म बनी है। उत्तराखंड के नैनीताल जिले में जन्मे राकेश तिवारी दिल्ली में रहते हैं और फिलहाल स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता करते हैं।)
मुशर्रफ अली ( न्यूनतम सरकार (आर्थिक लेखों का संकलन), स्मार्ट सिटी राहत या आफ़त, नोट बंदी, चुनाव जीतने का नया हथियार:डिजिटल पॉलिटिकल मार्केटिंग। अनुवाद: इटली की कवित्री एवं शांति कार्यकर्ता, मारिया मिरागिलिया के कविता संग्रह का हिंदी अनुवाद, एक नई सुबह और अंग्रेजी के कवि और लेखक डॉ दलीप खेत्रपाल की पुस्तक, ” प्लेसिबो, धर्म, अतीन्द्रिय ज्ञान और औषधि का हिंदी अनुवाद प्रकाशित, देश विदेश की अनेक पत्रिकाओं में हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू में लेखन।उदभावना साहित्यिक पत्रिका के संपादक मंडल में वर्तमान में कार्यरतकिसान और मजदूर आंदोलन का लंबा अनुभव musharraf.ali2@gmail.com)
प्रवीण शेखर (नई पीढ़ी के अग्रणी नाट्य निर्देशकों में शुमार। प्रमुख अंतरराष्ट्रीय – राष्ट्रीय नाट्य समारोहों में बतौर निर्देशक भागीदारी। निर्देशित नाटकों पर केंद्रित समारोह ‘रंग प्रवीण शेखर’ उज्जैन में आयोजित। अंग्रेजी साहित्य, मास कम्युनिकेशन, हिंदी साहित्य में एम. ए., फिल्म अध्ययन की शिक्षा फिल्म संस्थान, पुणे और कला अध्ययन राष्ट्रीय संग्रहालय, प्रयागराज से। स्मार्ट ग्रेजुएट (स्ट्रेटजिक मैनेजमेंट इन आर्ट ऑफ थिएटर)। कला, संस्कृति, साहित्य पर कई शोध, लेख आदि प्रकाशित।सांस्कृतिक समालोचना पर पुस्तक ‘रंग सृजन’, दो पूर्णकालिक नाटक ‘तीन मोटे’, ‘पक्षी और दीमक’, नुक्कड़ नाटक ‘तमाशा’ प्रकाशित। राष्ट्रीय सम्मान (भारत सरकार), राज्य सम्मान, उ.प्र. संगीत नाटक एकेडमी सम्मान, सीनियर फैलोशिप (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), कुंभ फेलोशिप (जी. बी. पंत सोशल साइंस इंस्टीट्यूट, प्रयागराज), अवॉर्ड आफ एक्सीलेंस (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) आदि सहित कई सम्मानों से अलंकृत। इलाहाबाद में घर pravinshekhar09@gmail.com)।
संस्थापक-संपादक -राम जन्म पाठक ( इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कला में स्नातक हैं। ‘‘द इंडियन एक्सप्रेस” समूह के हिंदी अखबार ‘जनसत्ता’ में लंबे समय तक काम किया। ‘रविवारी जनसत्ता’ के प्रभारी रहे। वह हिंदी के चर्चित कथाकारों और कवियों में शुमार हैं। उनकी कहानी ‘बन्दूक’ पर ‘चौसर’ फीचर फिल्म बनी है। ‘बंदूक एवं अन्य कहानियां’ कहानी संग्रह तथा ‘डूबता है एक सितारा और’ काव्य-संग्रह‘ प्रकाशित है। पत्रकारिता और साहित्य के क्षेत्र में उनका तीस साल से भी अधिक का अनुभव है। वह बोलने में नहीं, करने में विश्वास करते हैं। उनसे x @ramjanmpathak पर संपर्क किया जा सकता है।)
पीयूष वाजपेयी –संपादकीय सलाहकार
अरुण श्रीवास्तव– उत्तराखंड प्रतिनिधि
अनुप्रिया (फरीदाबाद)-कला प्रभारी
डॉ एसपी तिवारी (प्रयागराज)- पूर्वांचल प्रतिनिधि
सोना सिंह-दिल्ली ब्यूरो प्रमुख
डी यादव -दिल्ली प्रतिनिधि
सीत मिश्रा—भोपाल प्रतिनिधि
विवेक पाठक- गुजरात प्रतिनिधि