संगम बनाम ‘फ्रीडम’

एसपी तिवारी

प्रयागराज। संगम, प्रयागराज में स्थित गंगा,यमुना,और अदृश्य सरस्वती नदियों के मिलन स्थल का वह पवित्र स्थान है जहाँ अभी हाल में ही दुनिया का सबसे बड़ा मेला महाकुंभ सम्पन्न हुआ है।संगम एक आध्यात्मिक जगह है जहाँ जप,तप,दान,ध्यान,स्नान आदि का महत्व है।संगम की महानता हमारे प्राचीन ऋषियों मुनियों की देन है।संगम प्राणियों के मोक्ष या सभी दुःखों, परेशानियों की मुक्ति के लिए प्रसिद्ध है।संगम पर 45दिनों तक चले आध्यात्मिक क्रियाकलापों की चर्चा पूरे विश्व में हुई।

यद्यपि आधुनिक परिपेक्ष्य में इसे व्यापारिक मेला भी कह सकते हैं जहाँ सरकार से लेकर संस्थाओं ने जमकर कमाई की।अब बात करते हैं फ्रीडम की। फ्रीडम अमेरिका के स्पेसएक्स का वह ड्रैगन यान है जो अंतरिक्ष स्टेशन पर पिछले 9 महीने के अधिक समय से फंसे अंतरिक्ष यात्रियों सुनीता विलियम्स और बुच विलमौर को लेकर पृथ्वी पर लौटा है।जिसे अमेरिकी व्यवसायी एलेन मस्क की कंपनी ने बनाया है।सुनीता विलयम्स और बुच विलमौर अमेरिका के बोइंग स्टारलाइन नामक अंतरिक्ष यान से 5 जून 2024 को चलकर 6 जून 2024 को अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पहुंचे थे जो पृथ्वी से 400 किलोमीटर दूर पृथ्वी की कक्षा में अंतरिक्ष में बनाया गया है।इस स्टेशन का उद्देश्य ब्रह्मांड की संरचना को समझना है।पृथ्वी से 100 किलोमीटर की ऊँचाई या उससे अधिक वाले स्थान को अंतरिक्ष कहा जाता है

।सुनीता विलियम्स और बुच विलमौर को 13 जून 2024 को पृथ्वी पर लौटना था परंतु बोइंग स्टारलाइन यान में हीलियम गैस का रिसाव होने से उसमें तकनीकी खराबी आ गयी और यान बिना दोनों यात्रियों को लिए 7 सितंबर 2024 को पृथ्वी पर लौट आया।तब से दोनों अंतरिक्ष स्टेशन पर ही फंसे रह गए।अब जबकि दोनों पृथ्वी पर सकुशल वापस लौट आये हैं तो भारत सहित दुनियाभर में खुशी की लहर है।फंसे होने वाले समय में दोनों ने स्टेशन का रेडियो कचरा साफ करने,हार्डवेयर बदलने ,पुराने उपकरणों की मरम्मत व रखरखाव करने में समय बिताया।इस दौरान सुनीता ने सलाद के रूप में खाये जाने वाले एक पौधे को भी उगाया।अंतरिक्ष में निर्वात वाले गुरुत्वाकर्षण रहित स्थान पर रहना बहुत कठिन है।इसके लिए सघन प्रशिक्षण दिया जाता है।सुनीता विलियम्स एक अमेरिकी नागरिक हैं और NASA में काम करती हैं।वहाँ उन्हें लगभग 1करोड़ 26 लाख (भारतीय मुद्रा में)सालाना वेतन मिलता है।सुनीता विलियम्स के पिता डॉ दीपक पांड्या एक जाने माने तंत्रिका विज्ञानी है।जो 1958 में गुजरात के अहमदाबाद से अमेरिका के बोस्टन शहर में बस गए थे।वही ओहियो में 19 सितंबर 1965 को सुनीता का जन्म हुआ।

सुनीता विलियम्स बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं।वह पूर्व में नौसेना की पोत चालक, हेलीकॉप्टर चालक, परीक्षण पायलट,पेशेवर नौसैनिक, तैराक,गोताखोर, मैराथन धाविका,धर्मार्थ कार्यो हेतु धन जुटाने वाली,व पशुप्रेमी भी हैं।सुनीता के पति जे विलियम्स भी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं जो सुनीता के साथ ही पढ़े हैं।2008 में भारत सरकार ने विज्ञान व प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काम करने के लिए सुनीता विलियम्स को पद्म भूषण से सम्मानित किया था।

हम महाकुंभ के श्रद्धालुओं की संख्या से अमेरिका की आबादी की तुलना भले ही कर लें पर सच्चाई यह है कि आज भारतीय छात्र पढ़ने लिखने व नौकरी के लिए अमेरिका को अधिक पसंद करते हैं।एक आंकड़े के अनुसार अमेरिका के 29 लाख 60 हजार वैज्ञानिक इंजीनियरों में 9 लाख 50 हजार भारतीय ही हैं।भारत से प्रतिवर्ष 1 लाख 53 हजार विद्यार्थी विदेश जाते हैं जिसमें सबसे ज्यादा अमेरिका जाते हैं।फिर ब्रिटेन,ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी फ्रांस ।अब तक अमेरिका जाने वालों में 63 %ने अमेरिका की नागरिकता ले ली है और 22% वहां के स्थायी नागरिक बन गए हैं।अमेरिका चाहता है कि दुनियाभर की प्रतिभाएं उसके देश में काम करें इसलिए अच्छे वेतन के साथ साथ अपने कर्मचारियों को ढेर सारी सुविधाएं दे रखी हैं।अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA में काम करने वालों में 36%भारतीय हैं।एक आंकड़े के अनुसार दुनिया के 31%वैज्ञानिक अनुसंधान और इसके लिए फंडिंग अमेरिका करता है।अनुसंधान व विकास पर ज्यादातर खर्च वहाँ की निजी कंपनियां करती हैं।अनुसंधान पर खर्च करने वाली 100 बड़ी कंपनियों में शीर्ष 42 कंपनियां अमेरिका की हैं।

अमेरिका अनुसंधान व विकास पर भारी रकम खर्च करता है।नोबेल पुरस्कार पाने वालों में सबसे ज्यादा भारतीय हैं।बेहतर कार्य संस्कृति, अनुकूल कामकाजी माहौल,सुविधाओं से युक्त कार्य स्थल,मनोरंजन, खेलकूद, व्यायाम आदि की उत्तम व्यवस्था यहां की बहुराष्ट्रीय कंपनियों की विशेषता है।ये कंपनियां अपने कर्मचारियों की शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखती हैं।यहाँ नियोक्ता व कर्मचारी का दर्जा लगभग बराबर का होता है।जबकि भारत में सेवा की शर्तें नियोक्ता ही तय करता है।अमेरिका में अगर आपने काम अच्छे से कर दिया और आऊटपुट दे दिया तो कोई यह नहीं पूंछेगा कि आपने काम 2 घण्टे में किया या 10 घण्टे में।अमेरिका में घर से काम करने की छूट है जिससे कर्मचारी का पैसा व समय दोनों बचता है।यही कारण है कि भारतीय छात्र या काम करने वाले अमेरिका जाना पसंद करते हैं।अब तो अमेरिका भारतीयों को वापस भारत भेजने लगा है और नागरिकता के लिए 50 लाख डॉलर का शुल्क भी लगा दिया है।भारत से प्रतिभा पलायन रोकने का कोई ठोस उपाय नहीं हुआ।भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने 28 सितंबर 2015 को अपने अमेरिकी दौरे के दौरान कहा था कि हम प्रतिभा पलायन की बात करते हैं जो ब्रेन ड्रेन नहीं बल्कि ब्रेन गेन है।असल में यह ब्रेन डिपॉजिट है जो भारत माँ की सेवा के लिये अवसर का इंतजार कर रहा है। पर पिछले दस सालों में प्रतिभा पलायन कम नहीं हुआ बल्कि बढ़ा ही है।हम यह कहकर संतुष्ट हो सकते हैं कि अमेरिका की जितनी आबादी है उसके दुगुने तो भारत में गंगा स्नान कर लेते हैं।पर क्या यही विश्व गुरु बनने की राह है?

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