सिमट रही है संगमनगरी : फिर आने की आस में
एसपी तिवारी

प्रयागराज। बहुप्रचारित और बहुप्रसारित संगम में आयोजित महाकुंभ 2025 के स्नानार्थी और श्रद्धालु धीरे-धीरे अपने गांव-गिरांव लौट रहे हैं। लद-फंदकर आए थे, अब फरफर हैं और हल्के होकर अपना तंबू उखाड़ लिए हैं। झोला-झंडी और गंगाजल की बोतल समेत लिए हैं।
उनके अंदर पुण्य कमाकर लौटने का संतोष है। चेहरे पर तृप्ति है। लोक-परलोक साधने की लालसा पूरी हो गई है। मगर, कहीं कुछ है जो उन्हें थोड़ा बेचैन करता है। इसी महाकुंभ में तंबुओं में आग लगी है और भगदड़ में तमाम लोगों की मृत्यु हुई है। सरकारी आंकड़ा भले ही तीस जनों की मृत्यु का दावा करती हो, लेकिन स्थानीय लोगों और दूसरे स्रोतों की मानें तो मृतकों की संख्या कहीं अधिक रही है। लेकिन, जिन्होंने अपना स्नान पूरा कर लिया है, वे मगर हैं। उनके मन में निश्चिंतता का भाव है। वे मानते हैं कि तीरथ-धरम में तो कष्ट होते ही हैं। परदेश कलेश नरेशन को। परदेश में तो राजाओं को भी कष्ट होते हैं।
कपड़ों में लिपटा लकड़ी का आलीशान किलेनुमा महल अब धीरे धीरे छीज रहे है। गगनभेदी स्वर बंद हो गए हैं।
पर संगम की रौनक अभी बरकरार है।भीड़ कम हुई है पर श्रद्धालुओं का आना अभी जारी है।इस महाकुंभ को देखते हुए गंगा और यमुना के तटों पर बनाये गए पक्के घाट अब पर्यटन का रूप लेने लगे हैं।दशाश्वमेध ,नागवासुकी, सरस्वती, चंद्रशेखर आजाद,अरैल,किला ,छतनाग आदि घाटों को दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित किया गया है ताकि वर्षभर पर्यटकों का आना जारी रहे।अपनी आलीशान बनावट,बसावट और खट्टी मीठी यादों के साथ महाकुंभ 2025 विश्व पटल पर छाया रहा।राजनीति, फिल्मी दुनिया, उद्योग जगत,खेल जगत,साहित्य व संस्कृति जगत ,धर्म खेत्र आदि की शायद की कोई बड़ी हस्ती हो जो महाकुंभ में न आई हो।
वे फिर लौटेंगे..अगले कुंभ पर, महाकुंभ पर …अपनी गठरी-मुठरी समेटे।