कहीं गंगा तो कहीं यमुना में मिला फेकल कॉलिफोर्म, 44 नालों का पानी गिर रहा बिना शोधन के, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट से सरकार परेशान, कैसे हो समाधान


एसपी तिवारी की कलम से
प्रयागराज।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने महाकुंभ 2025 के शुरू होने के पहले 12,13 जनवरी 2025 को श्रृंगवेरपुर, फाफामऊ स्थित लार्ड कर्जन ब्रिज,नागवासुकी मंदिर के पास पीपा पुल 15,डीहा घाट,संगम ,संगम के पहले गंगा ,पुराने नैनी ब्रिज के पास यमुना के जल में प्रदूषण की जांच की तो पाया कि शास्त्री पुल के पहले नागवासुकी मंदिर के पास पांटून पुल 15,संगम,संगम के पहले गंगा के जल,डीहाघाट,नैनी के पुराने ब्रिज के पास यमुना के जल में फेकल कॉलिफोर्म की मात्रा मानक से कहीं अधिक है। फेकल कॉलिफोर्म सूक्ष्मजीवियों का एक वर्ग है जो गर्म रूधिर वाले जानवरों व मानवों के उत्सर्जित मल या अवशिष्ट पदार्थों में पाया जाता है।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की रिपोर्ट के अनुसार सीवेज में फेकल पदार्थ की ताकत को कोलीफॉर्म काउंट द्वारा नापा जाता है जो पानी की गुणवत्ता का एक पैरामीटर है। फेकल कोलीफॉर्म स्वयं कोई रोग नहीं है पर इसे रोग जनिकों के सूचक के रूप में जाना जाता है। किसी भी जलस्रोत में इसकी उपस्थिति से जल में हानिकारक वाइरस, परजीवी या अन्य संक्रामक बैक्टीरिया का पता चलता है।यह आमतौर पर मानव व पशुओं की आंतों में पाया जाता है और उनके मल द्वारा नदी में प्रवेश करके उसे प्रदूषित कर सकता है।तमाम वाइरस, परजीवी,बैक्टीरिया कम ताप पर निष्क्रिय पड़े रहते हैं पर जैसे ही उन्हें अनुकूल परिस्थितियां मिलती है सक्रिय हो जाते हैं।मानव शरीर का ताप उनकी वृद्धि के लिए बहुत अनुकूल होता है।दूषित जल में स्नान करने,पीने से स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है और दस्त,उल्टी,पेट में ऐंठन,आंतों में जलन,आंखों में जलन,शरीर पर चकत्ते,टायफाइड, हेपेटाइटिस, सांस की बीमारी,फेफड़ों में संक्रमण, कान की बीमारी आदि हो सकती है।
शहरी विकास मंत्रालय द्वारा गठित वैज्ञानिकों की एक समिति की रिपोर्ट 2004 में आई थी जिसमें कहा गया था कि फेकल कोलीफॉर्म की सीमा 100मिली जल में 500MPN होनी चाहिए और नदी में निर्वहन के लिए अधिकतम स्वीकार्य सीमा 2500MPN/100ml होनी चाहिए।केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जब 4 फरवरी 2025 को अपनी रिपोर्ट NGT को सौंपी तो उसमें नागवासुकी के पास गंगाजल में फेकल कोलीफॉर्म 11000MPN/100ml, संगम में 7900MPN/100ml, संगम के पहले गंगा जल में 4900MPN/100ml, डीहा घाट पर 4900MPN/100ml व पुराने नैनी ब्रिज के पास यमुना के जल में 3300MPN/100ml पाया गया।उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नवम्बर 2024 के बाद कोई रिपोर्ट नहीं दी थी।इसी रिपोर्ट को लेकर बवाल मचा तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गंगा व संगम का जल पूरी तरह साफ व पीने योग्य है।वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि गंगा के जल में बैक्टिरिफाज नामक बैक्टीरिया की सैकड़ों प्रजातियां मौजूद हैं जो गंगा जल को खराब नहीं होने देती हैं।अमेरिका स्थित जल शोध कार्यक्रम know your water की रिपोर्ट कहती है कि अनुपचारित मल पदार्थ पानी में अतिरिक्त कार्बनिक पदार्थ छोड़ता है जो सड़ जाता है जिससे पानी में ऑक्सिजन की कमी हो जाती है।
44 नालों का पानी गिर रहा बिना शोधन के
हम सब जानते हैं कि नदी के किनारे शौच आदि नित्यक्रिया की परंपरा अभी खत्म नहीं हुई है।गंगा और यमुना के किनारे इससे अछूते नहीं हैं।खासतौर पर माघमेले के वक्त तो शौच आदि का कार्य जनसंख्या बढ़ जाने से कुछ अधिक ही हो जाता है।शौचालय की सुविधा करोड़ों की भीड़ के लिए नाकाफी होती है।स्नान करने वाले भी बड़ी संख्या में गंदे कपड़े,जूते, चप्पल,आदि छोड़ जाते हैं।एक रिपोर्ट यह बताती है कि प्रयागराज में 81 नालों का पानी नदी में गिरता है जिसमें 44 नालों का पानी तो बिना ट्रीटमेंट के ही नदी में गिर रहा है।उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि सभी नालों का पानी साफ करने के बाद ही गंगा या यमुना में छोड़ा जा रहा है।
गंगा को साफ करने की योजना भी 1979 से चल रही है।2014 से नमामि गंगे योजना चालू है।बहरहाल गंगा का जल हमारी आस्था से जुड़ा हुआ है।पूरी आबादी इसे अमृत सरीखे मानती है।अब तक भारत की 60 करोड़ जनता तमाम मुश्किलें सहती हुई संगम स्नान का लाभ ले चुकी है आज भी संगम स्नान के लिए श्रद्धालुओं का आना जारी है।पर वैज्ञानिक पहलुओं को नजरअंदाज करना ठीक नहीं है।हम अपनी बीमारी का कारण भले ही गंगाजल को न मानें पर बीमार तो हो ही रहे हैं।भारत के हर व्यक्ति को गंगा को स्वच्छ रखने का संकल्प लेना होगा।वरना सरकारों का क्या वह तो अपने राजनीतिक लाभ हानि से गंगा को भी देखती हैं।
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