पश्चिम बंगाल : कलकत्ता हाईकोर्ट ने नंदीग्राम में हुई 10 हत्याओं के मुकदमों को दिया नए सिरे से खोलने का आदेश

दिल्ली डेस्क।
वर्ष 2007 से 2009 के बीच भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलन के दौरान नंदीग्राम और खेजुरी में हत्या के पुराने 10 मामलों में मुकदमे वापस लेने के पश्चिम बंगाल सरकार के फैसले को निरस्त करके कलकत्ता उच्च न्यायालय ने नए सिरे से इनकी सुनवाई के आदेश दिए हैं।
न्यायमूर्ति देबांगसु बसाक और न्यायमूर्ति मोहम्मद शब्बार राशिदी की खंडपीठ ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 321 के तहत मामलों को वापस लेने का राज्य का निर्णय किसी भी दशा में मंजूर करना कानूनी प्रस्ताव या तथ्य पर आधारित नहीं है और इसे कानूनीतौर जायज नहीं कहा ठहराया जा सकता। । धारा 321 सरकारी अभियोजक को निर्णय सुनाए जाने से पहले मामले से हटने की अनुमति देती है। न्यायालय ने पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा इन मामलों में मुकदमे वापस लेने के निर्णय को कानून की दृष्टि से गलत करार दिया है।
अदालत ने कहा कि हत्याएं हुई थीं। केस डायरी के साथ उपलब्ध पोस्टमार्टम रिपोर्ट इस तथ्य को स्थापित करती है। इसलिए, आज की तारीख में, समाज में ऐसे लोग हैं जो ऐसी हत्याओं के दोषी हैं। आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 321 के तहत अभियोजन पक्ष को वापस लेने की अनुमति देना जनहित में नहीं होगा। वास्तव में, इससे सार्वजनिक नुकसान और चोट पहुंचेगी।
न्यायाधीशद्वय की खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार ने तर्क दिया था कि सीआरपीसी की धारा 321 को लागू करने का निर्णय इस तर्क पर आधारित था कि ये मामले राजनीतिक कारणों का परिणाम हो सकते हैं। अदालत ने कहा, “घटना में या आपराधिक मामले में राजनीतिक प्रतिशोध का कोई महत्व नहीं है, जब आपराधिक मामला अपने आप में ठोस हो। वर्तमान आपराधिक मामलों में कई हत्याएं शामिल हैं।”
अदालत ने कहा कि समाज में किसी भी रूप में हिंसा का उन्मूलन एक आदर्श है जिसके लिए राज्य को प्रयास करना चाहिए। लोकतंत्र में, चुनाव से पहले या बाद में, किसी भी रूप या तरीके से हिंसा से परहेज किया जाना चाहिए। 2007 में नंदीग्राम में वाम दलों के कार्यकर्ताओं और तृणमूल कांग्रेस के समर्थकों के बीच एक औद्योगिक परियोजना के लिए जबरन भूमि अधिग्रहण के आरोपों को लेकर हिंसा भड़क उठी थी।