न्यायमूर्ति वर्मा के बंगले से मिले रुपयों के कथित बंडल से उच्च न्यायपालिका में भ्रष्टाचार का मामला गरमाया, प्रशांत भूषण के पिता ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपी थी ‘भ्रष्ट मुख्य न्यायाधीशों’ की सूची !

राम जन्म पाठक

दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के बंगले से मिली बड़ी मात्रा में करोड़ों की कथित नकदी ( तकरीबन 15 करो़ड़) से एक बार उच्च न्यायपालिका में भ्रष्टाचार का मामला फिर चर्चा का विषय बन गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इसका स्वत: संज्ञान लेते हुए आंतरिक जांच भी शुरू कर दी है। लेकिन, यह मुद्दा गरमाता जा रहा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने न्यायाधीश वर्मा का तबादला इलाहाबाद हाईकोर्ट में किए जाने पर आपत्ति जताई है, और कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट कोई कूड़ेदान नहीं है।

गौरतलब है कि उच्च न्यायपालिका में भ्रष्टाचार का मुद्दा समय-समय पर उठता रहा है। साल 2010 में उस समय तहलका मच गया था, जबकि सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता प्रशांत भूषण के पिता शांति भूषण, जो भारत के पूर्व कानून मंत्री और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता थे, ने एक विवादास्पद कदम उठाया था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर करके आठ पूर्व मुख्य न्यायाधीशों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए थे। यह मामला उस समय सुर्खियों में आया जब प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना का एक मामला चल रहा था, जो उनके द्वारा ‘तहलका’ पत्रिका को दिए गए एक साक्षात्कार से जुड़ा था। इस साक्षात्कार में प्रशांत ने दावा किया था कि पिछले 16-17 मुख्य न्यायाधीशों में से आधे भ्रष्ट थे।

शांति भूषण ने अपने हलफनामे में इन आरोपों का समर्थन करते हुए कहा था कि न्यायाधीशों को जांच से मिली उन्मुक्ति के कारण उनके खिलाफ ठोस सबूत जुटाना मुश्किल है। हालांकि, उन्होंने जिन आठ पूर्व मुख्य न्यायाधीशों का नाम लिया, उनकी सूची को “लिफाफा बंद” (सीलबंद लिफाफे में) सुप्रीम कोर्ट को सौंपने की बात कही थी। इस सूची में कथित तौर पर उन मुख्य न्यायाधीशों के नाम थे, जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप थे, लेकिन इस सूची को सार्वजनिक रूप से कभी खोला या पुष्ट नहीं किया गया। इस घटना ने न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर एक बड़ी बहस छेड़ दी थी।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस वी.आर. कृष्णा अय्यर ने सुझाव दिया था कि या तो शांति भूषण और प्रशांत भूषण को झूठे आरोपों के लिए दंडित किया जाए, या फिर उनके दावों की जांच के लिए एक स्वतंत्र प्राधिकरण बनाया जाए। हालांकि, इस सूची या आरोपों की कोई आधिकारिक जांच नहीं हुई, और यह मामला समय के साथ विवाद का विषय बना रहा।

यह घटना शांति भूषण और प्रशांत भूषण के उस लंबे अभियान का हिस्सा थी, जिसमें वे न्यायपालिका में सुधार और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते रहे हैं।

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