ग्रोक 3 उवाच : मोदी के ‘दश-रत्न’ चाटुकार पत्रकार अर्णब-सुधीर, रजत-ओ-अंजना-कुमार ( नाविका)/अमीश-ओ रुबिका-ओ- रोहित-ओ सुरेश-स्मिता प्रकाश

जनमन इंडिया टीम द्वारा संकलित और संपादित

दिल्ली।

ग्रोक 3 से पूछा गया प्रश्न —

क्या आप भारत में मोदी के चाटुकार पत्रकारों का नाम बता सकते हैं ? यह भी बताएं कि वे चाटुकारिता क्यों करते हैं ?

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मैं भारत में उन पत्रकारों के नाम बता सकता हूँ जिन्हें अक्सर नरेंद्र मोदी या उनकी सरकार के प्रति पक्षपाती या समर्थक माना जाता है। यह धारणा आमतौर पर सोशल मीडिया, समाचार विश्लेषण, और कुछ आलोचकों के बीच प्रचलित “गोदी मीडिया” जैसे शब्दों से उभरती है। हालाँकि, “चाटुकारिता” एक व्यक्तिपरक शब्द है और इसे साबित करना कठिन हो सकता है, क्योंकि यह पत्रकारों के इरादों और उनके काम की व्याख्या पर निर्भर करता है। फिर भी, मैं आपको कुछ नाम और संभावित कारण बता सकता हूँ, जो जनधारणा और उपलब्ध जानकारी पर आधारित हैं।

नाम:

अर्णब गोस्वामी (Arnab Goswami) – रिपब्लिक टीवी के संस्थापक और एंकर।

सुधीर चौधरी (Sudhir Chaudhary) – आज तक और पहले ज़ी न्यूज़ से जुड़े।

रजत शर्मा (Rajat Sharma) – इंडिया टीवी के प्रमुख।

अंजना ओम कश्यप (Anjana Om Kashyap) – आज तक की एंकर।

नविका कुमार (Navika Kumar) – टाइम्स नाउ की एंकर।

अमिश देवगन (Amish Devgan) – न्यूज़18 इंडिया के एंकर।

रुबिका लियाकत (Rubika Liyaquat) – भारत24 और पहले न्यूज़18 से जुड़ी।

सुरेश चव्हाणके (Suresh Chavhanke) – सुदर्शन न्यूज़ के प्रमुख।

रोहित सरदाना (Rohit Sardana) – मृत्यु से पहले आज तक और इंडिया टीवी से जुड़े थे।

स्मिता प्रकाश (Smita Prakash) – एएनआई की संपादक।

चाटुकारिता क्यों करते हैं? (संभावित कारण):

राजनीतिक दबाव या समर्थन: कुछ आलोचकों का मानना है कि ये पत्रकार सरकार के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने के लिए ऐसा करते हैं, जिससे उन्हें विशेष जानकारी, साक्षात्कार, या सरकारी विज्ञापन मिल सकें।

दर्शक आधार (TRP): भारत में एक बड़ा दर्शक वर्ग भाजपा और मोदी का समर्थन करता है। इनके पक्ष में कवरेज से टीआरपी बढ़ती है, जो न्यूज़ चैनलों के लिए आर्थिक लाभ का स्रोत है।

वैचारिक झुकाव: कुछ पत्रकार व्यक्तिगत रूप से मोदी की नीतियों, जैसे राष्ट्रवाद या आर्थिक सुधार, से सहमत हो सकते हैं और इसे अपनी पत्रकारिता में प्रतिबिंबित करते हैं।

विवाद और ध्यान: सरकार के पक्ष में चिल्लम-चिल्ली बहस या सनसनीखेज कवरेज से दर्शकों का ध्यान आकर्षित होता है, जो इन पत्रकारों और उनके चैनलों को प्रासंगिक बनाए रखता है।

आर्थिक लाभ: बड़े मीडिया हाउस, जो कॉर्पोरेट्स के स्वामित्व में हैं, सरकार से कर छूट, लाइसेंस, या अन्य लाभ चाहते हैं। यह पत्रकारों पर अप्रत्यक्ष दबाव डाल सकता है।

भय या सुरक्षा: कुछ मामलों में, सरकार की आलोचना करने पर कानूनी कार्रवाई या उत्पीड़न का डर भी कारण हो सकता है।

ध्यान दें:

यह सूची और कारण जनमत, सोशल मीडिया पर चर्चा, और कुछ विश्लेषणों पर आधारित हैं। हर पत्रकार के लिए “चाटुकारिता” का आरोप सिद्ध नहीं हो सकता, और कई अपने काम को निष्पक्ष मानते हैं।

दूसरी ओर, रवीश कुमार जैसे पत्रकारों को सरकार के आलोचक माना जाता है, जिससे भारत में मीडिया के ध्रुवीकरण का पता चलता है।

क्या आप किसी विशिष्ट पत्रकार या कारण के बारे में और जानना चाहते हैं?

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