एक दशक से न्यायपालिका की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी गंभीर खतरे में है : न्यायमूर्ति बीएन कृष्णा

जनमन इंडिया ब्यूरो

दिल्ली। लोकतांत्रिक अधिकारों और धर्मनिरपेक्षता पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन ग़ालिब इंस्टीट्यूट हॉल में संपन्न हुआ। सम्मेलन में वक्ताओं ने देश में मानवाधिकारों और धर्मनिरपेक्षता के उल्लंघन पर गंभीर चिंता व्यक्त की।

इस अवसर पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीएन. श्रीकृष्ण ने अध्यक्षता की, जबकि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एके पटनायक मुख्य वक्ता रहे। अन्य वक्ताओं में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, डॉ. आदित्य सोंधी, वरिष्ठ पत्रकार परांजय गुहा ठाकुरता सामाजिक कार्यकर्ता अनिल नौरिया  और सीपीडीआरएस के राष्ट्रीय संयोजक द्वारिकानाथ रथ शामिल थे। 

न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण ने वर्तमान स्थिति को गहरे संकट में बताते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट से लेकर सत्र न्यायालयों तक 5 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं। उन्होंने कहा, “न्याय में देरी, न्याय से इनकार है।” न्यायमूर्ति एके पटनायक ने अपने भाषण में कहा कि लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए जिम्मेदार संस्थाएं ही उनका सबसे अधिक उल्लंघन कर रही हैं। कस्टोडियल मौतों, फर्जी मुठभेड़ों और जेल में यातनाओं में भारी वृद्धि हुई है। अन्य वक्ताओं ने कहा कि आदिवासी, दलित, महिलाएं, बच्चे या अन्य वंचित समूह सबसे भयावह शोषण और मानवाधिकार हनन का शिकार हैं। 

भारत में मानवाधिकारों के ह्रास को वैश्विक रैंकिंग में भी देखा जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र मानव स्वतंत्रता सूचकांक 2023 में भारत 165 देशों में 109वें स्थान पर था, जहाँ 2015 से 2023 के बीच इसके समग्र अंक में 9% गिरावट आई। 2021 में 31,677 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए, जबकि 2022 में महिलाओं के खिलाफ 4.45 लाख अपराध दर्ज हुए। कस्टोडियल हिंसा बढ़ रही है,

एनएचआरसी के अनुसार, 2022 के पहले नौ महीनों में ही पुलिस हिरासत में 147 मौतें, न्यायिक हिरासत में 1,882 मौतें और 119 न्यायोत्तर मौतें (एनकाउंटर) दर्ज की गईं। चौंकाने वाली बात यह है कि भारत के 5.5 लाख कैदियों में से 77% जमानत मिलने के बावजूद जेलों में बंद हैं।  दमनकारी कानूनों जैसे यूएपीए, एनएसए, पीएसए जैसे कानूनों और सीबीआई-ईडी जैसी इन्वेस्टिगेटिव एजेंसियों के दुरुपयोग ने जनता में भय पैदा किया है। मणिपुर में 175 लोग मारे गए और 60,000 से अधिक विस्थापित हुए। सम्मेलन में देशभर के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। मुख्य प्रस्ताव के साथ-साथ फिलिस्तीन पर भी प्रस्ताव पारित किया गया। इसका उद्देश्य बौद्धिजीवियों और आम जनता को एकजुट करके एक शक्तिशाली मानवाधिकार आंदोलन खड़ा करना है। लोकतंत्र में असंतोष का अधिकार और विरोध की आवाज़ उसका मूलभूत सार है।

न्यायमूर्ति बीएन श्रीकृष्ण ने कहा, “जनता के असंतोष के अधिकार और विरोध की आवाज़ उठाना लोकतंत्र की आत्मा है।” उन्होंने बताया कि असली लोकतंत्र में सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार होगा, कानून का शासन रहेगा, और धर्मनिरपेक्षता का अर्थ अन्य धार्मिक मान्यताओं को सहन करने की क्षमता भी है। लेकिन उन्होंने खेद जताया कि भारत में ये सभी मूलभूत मूल्य अब घेरेबंदी का शिकार हैं।

उन्होंने कहा कि पिछले एक दशक से न्यायपालिका की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आज़ादी भी गंभीर खतरे में है। अंत में उन्होंने घोषणा की कि नागरिक समाज को लोगों के कठिनाई से अर्जित अधिकारों पर हो रहे इन हमलों के खिलाफ संघर्ष करना होगा।

अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने इस सम्मेलन को संबोधित करते हुए लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और नागरिकता पर गहरे संकट के मुद्दों पर बात की। उन्होंने कहा, “भारत में अब मौलिक अधिकारों पर बुलडोज़र चलाया जा रहा है। संवैधानिक संस्थानों को नष्ट किया जा रहा है और दमनकारी कानून थोपे जा रहे हैं।” उन्होंने कहा कि निर्वाचन आयोग (EC) और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की वर्तमान स्थिति इसका जीवंत उदाहरण है कि ये संस्थाएँ शासन व्यवस्था के उपांग बनकर रह गई हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा के फंडिंग का ऑडिट रोक दिया गया है, लेकिन सत्ता का दुरुपयोग करके विपक्षी दलों के खातों का ही ऑडिट किया जा रहा है। सरकार के विरोध में आवाज़ उठाने वालों को वर्षों तक बिना मुकदमा चलाए जेल में सड़ाया जा रहा है। समय पर न्याय और कानूनी प्रक्रिया नहीं दी जा रही। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे डर छोड़कर इस दमनकारी शासन के खिलाफ खुलकर सामने आएं। इस नागरिक सम्मेलन में चालीस सदस्यीय समिति बनाई गई है।

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