उत्तर प्रदेश : अंतिम मंजूरी के बगैर गाजियाबाद, मेरठ और मुजफ्फरनगर में काटे गए 17,607 पेड़, मेरठ के डीएम ने भारतीय वन सर्वेक्षण की टिप्पणी को किया अनदेखा

जनमन इंडिया ब्यूरो

नोएडा। क्या जब मामला धर्म से जुड़ा हो तो अधिकारी भी खामोश हो जाते हैं ? मामला कुछ ऐसा ही है। गाजियाबाद, मेरठ और मुजफ्फरनगर में प्रस्तावित कांवड़ मार्ग तैयार करने के लिए अधिकारियों ने हजारों पेड़ बिना जायज अनमुति के कटवा दिए। केंद्रीय मंत्रालय की ओर से परियोजना को अंतिमरूप से मंजूर नहीं किया था। यहां तक भारतीय वन सर्वेक्षण के अधिकारी की टिप्पणी को भी मेरठ के जिलाधिकारी ने दरिकनार कर दिया। यह सब बातें सामने आई हैं, भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) द्वारा राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को सौंपी गई एक रिपोर्ट में।

रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा के लिए नया मार्ग बनाने के लिए हजारों पेड़ों को अंतिम मंजूरी न मिलने के बावजूद काटा गया। उत्तर प्रदेश सरकार के लोक निर्माण विभाग द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, 111 किलोमीटर लंबे नए कांवड़ यात्रा मार्ग के निर्माण के लिए उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद, मेरठ और मुजफ्फरनगर जिलों में कुल 17,607 पेड़ काटे गए हैं। एफएसआई पिछले साल एनजीटी द्वारा गठित चार सदस्यीय संयुक्त समिति का हिस्सा थी, जिसका उद्देश्य यह पता लगाना था कि क्या परियोजना के लिए पेड़ों को अवैध रूप से काटा गया था।

एफएसआई की 20 फरवरी की रिपोर्ट में कहा कि इसकी टिप्पणी को मेरठ के जिला अधिकारी ने 17 जनवरी को एनजीटी को सौंपी गई संयुक्त समिति की ‘अंतिम रिपोर्ट’ में शामिल नहीं किया था। जिलाधिकारी  पैनल के सदस्यों में शामिल होने के अलावा समन्वयक भी थे। एफएसआई की 20 फरवरी की रिपोर्ट कहती है कि पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जानकारी दी है कि परियोजना को अंतिम मंजूरी नहीं दी गई थी,  जो कि पेड़ों की कटाई के लिए एक जरूरी शर्त थी। जिलाधिकारी मेरठ की तरफ से संयुक्त समिति की ओर से पेश की गई रपट में कहा गया कि पेड़ों की कटाई में उसे कुछ भी गैरकानूनी नहीं मिला। 17 जनवरी को दाखिल इस रपट में बताया गया है कि मौका मुआयना के दौरान संयुक्त समिति को अत्यधिक दरख्तों की कटाई या अवैध रूप से काटे गए किसी दरख्त की जानकारी नहीं मिली थी।

राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने 20 जनवरी को गौर किया कि समिति की रिपोर्ट पर एफएसआई की संयुक्त निदेशक मीरा अय्यर के हस्ताक्षर नहीं थे। न्यायाधिकरण ने कहा कि अगर उनका रुख अलहदा है तो वह अलग से अपनी रिपोर्ट दाखिल कर सकती हैं।

इसके बाद, इजाजत मिलते ही 20 फरवरी को अय्यर ने अपनी टिप्पणी प्रस्तुत की, जिसमें कहा गया कि एफएसआई के पक्ष को मेरठ के जिलाधिकारी की ओर हरित पैनल को सौंपी गई रिपोर्ट में शामिल नहीं किया गया है।

बताते चलें कि पिछली साल, एनजीटी ने एक अखबार में छपी उस खबर का स्वत:संज्ञान लिया था, जिसमें कहा गया था कि उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार एक लाख, बारह हजार, सात सौ बहत्तर पेड़ों को उक्त तीन जिलों यानी गाजियाबाद, मेरठ और मुजफ्फरनगर में प्रस्तावित रास्ते ( जाहिर हैं, कांवड़ियों के लिए) बनाने के लिए काटने की योजना बना रही है।

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