इरा वेब पत्रिका का प्रेम-विशेषांक : इजहार-ए-इश्क

नाजिया सुलतान उर्फ बेबी खान की कलम से

प्रेम बेटी को कॉलेज छोड़ता बाप है
प्रेम गीले में सोई मां है
प्रेम नीलामी है मौसम की
जो भी जैसा भी जहां है

जीवन की कोमलतम अनुभूति प्रेम पर केंद्रित यादगार रचनाओं के साथ ‘इरा’ मासिक वेब पत्रिका का प्रेम विशेषांक फरवरी 2025 कई मायनों में अनूठा और अप्रतिम है।
विशेषांक में संवेदनामयी कविताएं, भावपूर्ण कहानियां, गहन भावाभिव्यक्ति लिए हाइकु व क्षणिकाएं, रोचक शोधपरक लेख, समीक्षाएं और साथ ही, सार्थक व सारगर्भित संपादकीय, इसे समग्र प्रस्तुति का रूप देता है।
संपादकीय में अल्का मिश्रा लिखती हैं ‘प्रेम की हमारे जीवन के उत्थान में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कई शोधों के मुताबिक यह साबित हुआ है कि जिन बच्चों को बचपन में किसी कारण प्रेम नहीं मिल पाता वे अक्सर किसी को प्रेम दे भी नहीं पाते और आजीवन अपूर्णता का अनुभव करते हैं।’
पत्रिका में कु्छ यादगार गजलें हैं। तरुणा मिश्रा की ग़ज़ल के कुछ शेर हैं –
सैलाब बन के आई उठा ले गयी मुझे
इक याद दर्द दर्द बहा ले गयी मुझे
मुझ पर खुले हैं रास्ते वालिद की सीख से
मंजिल पर मेरी मां की दुआ ले गई मुझे

दरिया किसी की प्यास का सहारा से जा मिला
दोनों ने अपनी तिश्नगी आपस में बांट ली
——
सत्य पी गंगानगर की गजल भी दिल को छूने वाली है
उनकी एक गजल का शेर है –
मैं हूं दफ्तर में कई हफ्तों से गुम
मैं नहीं मुझ सा कोई जाता है घर

विशेषांक में प्रेम पर केंद्रित कुछ लाजवाब कविताएं हैं। डॉक्टर ज्योत्सना मिश्रा की एक कविता की कुछ पंक्तियां हैं
प्रेम बेटी को कॉलेज छोड़ता बाप है
प्रेम गीले में सोई मां है
प्रेम नीलामी है मौसम की
जो भी जैसा भी जहां है

—–
हरिंदर राणावत की कविता ‘अभियुक्त’ निस्वार्थ प्रेम के उस रूप को सामने लाती है जहां प्रेम में होना ही प्रेम की चरम परिणति है।
वे लिखते हैं –
अपने मामले की पैरवी के लिए
नहीं है मेरे पास कोई नामी-गिरामी वकील
इतना जानता हूं .. तुमसे प्यार है
नहीं चाहता
तुम मेरे प्यार के जवाब में कुछ कहो .. कुछ करो
इतना चाहता हूं
तुम मेरे प्यार का संज्ञान तो लो
एक सुनवाई के लिए हामी भर दो
साक्ष्यों को पेश तो होने दो
सबूतों पर एक नजर तो डालो
और जब फैसले का वक्त आए .. तो भले ही
देती रहो ..
तारीख पे तारीख

इनके अलावा अर्चना उपाध्याय, सुनीता जैन रूपम और चंद्रेश्वर की भावपूर्ण कविताएं हैं।
‘विमर्श’ के अन्तर्गत पाकिस्तानी शायरा परवीन शाकिर, जिन्हें हिंदुस्तान में भी लोग दिल-ओ-जान से चाहते हैं, की जिंदगी के मीठे, तल्ख वाकयों से रूबरू कराता जानकारीपूर्ण और आत्मीय लेख है। डॉक्टर जिया उर रहमान जाफरी ने अपने लेख ‘नाजुक एहसास की शायरा – परवीन शाकिर’ में सारगर्भित तरीके से इस अजीम शायरा की उतार-चढ़ाव भरी जिंदगी और बेमिसाल शायरी पर आत्मीय चर्चा की है। परवीन शाकिर के कुछ शेर जो उन्होंने उद्धृत किए हैं –
रुके तो चांद चले तो हवाओं जैसा था
वह शख्स धूप में देखूं तो छांव जैसा था
जाफरी लिखते हैं कि पाकिस्तान की आब-ओ-हवा में पलने के बावजूद परवीन शाकिर का कृष्ण प्रेम भी जग जाहिर है। अपनी शायरी में कभी वे राधा बन जाती हैं तो कभी गोपी बनाकर कृष्ण को रिझाती हैं
आंख जब आईने से हटाई
श्याम सुंदर से राधा मिल आई

तू है राधा अपने कृष्ण की
तेरा कोई भी नाम होता
——
कहानियों में सीमा सिंह की ‘अधूरा प्रायश्चित’, सुधा गोयल की ‘मीरा’, रश्मि रविजा की ‘चुभन टूटते सपनों के किरचों की’, अनीता रश्मि की ‘रिश्ते यूं
ही नहीं खोते’, मौसमी चंद्रा की ‘कुहू’, अंजू केशव की ‘24 कैरेट’ और
मनीष वैद्य की ‘खिरनी’ प्रभावपूर्ण और दिल को छूने वाली हैं।
लघु कथाओं में संध्या तिवारी की रचना ‘काला फागुन’ बहुत मर्मस्पर्शी है।
‘शोधपत्र’ के अंतर्गत अरुण कुमार निषाद का लेख ‘ताबिश सुल्तानपुरी की गजलों में प्रेम की अभिव्यक्ति’ इतना रोचक है कि एक बार पढ़ना शुरू करने पर आप धाराप्रवाह पढ़ते चले जाते हैं।
पुष्पा सिंह के हाइकु गहन भावाभिव्यक्ति लिए हैं। जैसे –
खिले पलाश
उसके बगीचे में
महकती में प्रेम पर्वत
चलना संभल कर
पथ दुष्कर

अलका ‘शरर’ के माहिए भी ध्यान खींचते हैं। जैसे –
गमगीं या शाद रहो
ऐसे जीना तुम
दुनिया को याद रहोइनके साथ ही, प्रगति गुप्ता के उपन्यास ‘पूर्णविराम से पहले’ की बारहवीं कड़ी है। वहीं, समीक्षाएं, धरोहर साहित्य, साहित्यिक समाचार, कला व संस्कृति पर लेख आदि को मिलाकर गंभीर अध्येताओं और साहित्यरसिकों के लिए प्रचुर विचारशील, संवेदनामयी, ह्रदयस्पर्शी सामग्री है, जो इस विशेषांक को निश्चित ही पठनीय और संग्रहणीय बनाता है।

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