आस्था और प्रदूषण के बीच सिसकती गंगा

एसपी तिवारी की रिपोर्ट
प्रयागराज। गंगा एक नदी ही नहीं भारत की संस्कृति हैं।हमारी मां हैं।जीवन का आधार हैं।हिमालय से जब निकलती हैं तो अपने साथ अनेकों प्रकार की मिट्टी,खनिज,जड़ी बूटी लेकर चलती हैं ।ये सब पानी के साथ मिलकर ऐसा मिश्रण बनाते हैं कि जिसे आज तक कोई समझ नहीं पाया है।गंगा का पानी सड़ता नहीं।इसमें ऑक्सीजन सोखने की अद्भुत क्षमता होती है।गंगा के पानी में दूसरी नदियों की अपेक्षा सड़ने वाली गंदगी को हजम करने की क्षमता 15 से 20 गुना अधिक होती है।पर्यावरण विज्ञानियों का कहना है कि गंगा को साफ करने वाले तत्व गंगा की तलहटी में ही मौजूद रहते हैं।लखनऊ के नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट ने एक अध्ययन में पाया कि गंगाजल में बीमारी पैदा करने वाले ई कोली बैक्टीरिया को मारने की क्षमता होती है।गंगोत्री ग्लेसियर से निकली भागीरथी 250 किलोमीटर का सफर पहाड़ों के बीच से करती हुईं देवप्रयाग में अलकनंदा से मिलकर गंगा नाम पा जाती है।देवप्रयाग यानी स्वर्ग का संगम,देवों का संगम।गंगोत्री से देवप्रयाग तक गंगा का पानी बिल्कुल साफ व स्वच्छ होता है।देवप्रयाग से निकलकर गंगा ऋषिकेश होते हुए करीब 95 किलोमीटर का सफर तय करते हुए हरिद्वार पहुंचती हैं।हरिद्वार तक पहाड़ों ,कंदराओं से होकर गुजरती गंगा की यात्रा अब मैदानी इलाकों में शुरू होती है।
गंगोत्री से आने वाला अधिकांश पानी हरिद्वार से नहरों में डाल दिया जाता है।भागीरथी नदी पर बने 260.5मीटर ऊंचे टिहरी बांध में अधिकांश पानी रोक लिया जाता है।फिर बुलंदशहर जिले में गंगा पर बने नरोरा बैराज में पानी रोक लिया जाता है।नरोरा के बाद से मुख्यतया भूगर्भ से प्राप्त व दूसरी नदियों का पानी गंगा में आता है।जैसेही गंगा मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती हैं इसमें इसके किनारे बसी आबादी का कचरा,मलमूत्र,औद्योगिक संस्थानों जैसे ,लेड बैटरी,पेपर मिल,स्टील प्लांट्स,टेक्सटाइल, कपड़ा,चमड़ा, चीनी ,साबुन आदि फैक्टरियों के अपशिष्ट गंगा में छोड़ दिये जाते हैं।गंगा के किनारे दाह संस्कार, आंशिक रूप से जले शवों आदि को प्रवाहित कर दिया जाता है।गंगा के किनारे बसा कानपुर एक बड़ा औद्योगिक शहर है।
अकेले कानपुर में ही 75 करोड़ लीटर सीवेज का पानी या मल गंगा में गिरता है।जिसमें चमड़ा व दूसरे कारखानों का जहरीला केमिकल और अस्पतालों के विषैले पदार्थ शामिल हैं।कन्नौज से वाराणसी तक समस्या ज्यादा गंभीर है।सी पी सी बी के वैज्ञानिक डॉ ऋषिकुमार कहते हैं कि गंगा में इतना कूड़ा आ रहा है कि गंगाजल में उपस्थित बैक्टिरिया वाइरस उसे मार नहीं पा रहे हैं या मारने के लिए कम पड़ जा रहे हैं। कानपुर में प्रदूषण रोकने वाली संस्था इको फ्रेंड्स के अध्यक्ष राकेश जायसवाल कहते हैं कि इस धारणा और विश्वास ने गंगा को बहुत नुकसान किया है कि गंगा सारी गंदगी साफ करने में सक्षम है।
बढ़ती जनसंख्या, अनियोजित औद्योगिकीकरण, गंगा और उसकी सहायक नदियों में प्रदूषक तत्वों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।प्रयागराज में ही 81 नालों का सीवेज या मलमूत्र गंगा व यमुना में गिरता है।54 नालों का 231.40MLD सीवेज STP में ले जाकर शोधित किया जा रहा है।22 नाले ऐसे हैं जिनके सीवेज को शोधित करने की योजना है।
वाराणसी में भी गंगा को प्रदूषित करने का काम अस्सी व वरुणा नदी कर रही हैं।बिहार में भी गंगा का हाल ठीक नहीं है।
वाराणसी में भी 8 STP लगे हैं जो पूर्णतया काम नहीं कर रहे हैं।गंगा को साफ करने के लिए सैकड़ों हजार करोड़ रुपये सरकार खर्च किये जा चुके हैं पर नतीजा बहुत संतोषजनक नहीं है। अधिकांश धनराशि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है।
सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था कि 4 फरवरी 2025 को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट ने खलबली पैदा कर दी।फिर क्या था कई छोटे बड़े वैज्ञानिक अपनी अपनी रिपोर्ट लेकर हाजिर हो गए।कोई बैक्टिरिफाज की बात तो कोई एल्कलाइन पानी की।आमतौर पर पीने का पानी न तो अधिक अम्लीय और न ही अधिक क्षारीय होना चाहिए।पीने के पानी का पी एच 6.5से 9.5तक होना चाहिए।जिस पानी में सोडियम, पोटैशियम, मैग्नीशियम, कैल्शियम, आयरन,जिंक आदि के खनिज लवण मिले होते हैं वह पानी क्षारीय हो जाता है।पी एच किसी विलयन के अम्ल या क्षार होने की प्रकृति का मापक है।इसका मान 0 से 14 तक होता है।शुद्ध पानी का पी एच 7 होता है।पी एच 7 से कम होने पर अम्लीय व 7 से अधिक होने पर क्षारीय प्रकृति बताता है।गंगा व यमुना दोनों के पानी की प्रकृति क्षारीय है।
बढ़ते जल ,वायु व मृदा प्रदूषण ने भूगर्भ, नदियों,झरनों के पानी के साथ साथ गंगा यमुना सहित सभी नदियों को प्रदूषित किया है।इस प्रदूषण को दूर करने के लिए बड़े जनांदोलन की जरूरत है।